नौबतखाने में इबादत – यतीन्द्र मिश्र प्रश्नोत्तर
Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 1916 ई० में डुमराँव में हुआ था।
प्रश्न 2. बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि कैसे हुई ?
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि रसूलनबाई और बतूलनबाई के टप्पे, ठुमरी और दादरा को सुनकर हुई।
प्रश्न 3. शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को कहाँ मिली?
उत्तर
शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को अपने ननिहाल काशी में अपने ममाद्वय सादिक और अलीबख्श से मिली।
प्रश्न 4. बिस्मिल्ला खां बचपन में किनकी फिल्में देखते थे। था, विस्मिल्ला खाँ बचपन में किरकी फिल्मों के दीवाने थे?
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ बचपन में गीताबाली और सुलोचना की फिल्मों के दीवाने थे।
प्रश्न 5. अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को किसमें अत्यधिक प्रद्धा थी ?
उत्तर
अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को काशी, विश्वनाथ और बालाजी में अगाध श्रद्धा थी।
प्रश्न 6. बिस्मिल्ला खाँ किसको जन्नत मानते थे ?
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ शहनाई और काशी को जन्नत मानते थे।
प्रश्न 7. बिस्मिल्ला खाँ किसके पर्याय थे?
उत्तर
बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के पर्याय थे और शहनाई उनका।
प्रश्न 8. बिस्मिल्ला खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर किसका अफसोस रहा?
उत्तर
बिस्मिल्ला.खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर संगतियों के लिए गायकों के मन में आदर न होने, चैता कजरी के गायब होने और मलाई, शुद्ध घी की कचौड़ी न मिलने का अफ़सोस रहा।
Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है ?
उत्तर
प्रश्न 2. सुषिर वाद्य किन्हें कहते हैं। ‘शहनाई’ शब्द की व्युत्पत्ति किस प्रकार हुई है ?
उत्तर
प्रश्न 3. बिस्मिल्ला खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है ?
उत्तर
इससे उनके व्यक्तित्व का वह पक्ष उद्घाटित होता है-खाँ साहब ने अपने-आपको कभी परिपूर्ण नहीं माना। बल्कि 80 वर्ष की शहनाई वादन यात्रा में अपने-आपको एक रियाजी ही मानते रहे तथा बालाजी के नौबतखाने में अपने को रियाजी मान इबादत करते रहें।
प्रश्न 4. बिस्मिल्ला खाँ मुर्हरम की आठवीं तारीख को केवल नौहा बजाते थे, कोई राग-रागिनी नहीं। क्यों ?
उत्तर
प्रश्न 5. बिस्मिल्ला खाँ को फिल्मों का शौक था, आप उनके इस शौक को किस तरह देखते हैं और क्यों ?
उत्तर
Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. मुहर्रम पर्व से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर
प्रश्न 2. “संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते है?
उत्तर
प्रश्न 3. बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है ?
उत्तर
इससे हमें सिख मिलती है कि जीवन में अपने इष्ट को सदैव याद रखने से ऊँची सफलता प्राप्त होती है। अथवा जिससे या जहाँ से हमें सफलता मिली है उसके प्रति कृतज्ञता समर्पण का भाव कभी भी नहीं भूलना चाहिए।
प्रश्न 4. ‘बिस्मिल्ला खाँ का मतलब – बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।’ एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर
जब कभी बिस्मिल्ला खाँ की हाथ में शहनाई आई और शहनाई में फेंक पड़ी तो शहनाई की आवाज में मानो जादू आ गया हो शहनाई की कलाकारी शुरू होते ही सारा वातावरण सुर-ताल और लय में लीन हो जाता था। श्रोता उनके स्वर को सुनकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त कर झूमने लगते थे मानो परवरदिगार की कृपा, उस्ताद की नसीहत और गंगा मइया की कृपा एक साथ मिलकर सातो स्वर के साथ अवतरित हो गयी हो।
खाँ साहब एक महान कलाकार के रूप में इसलिए भी प्रसिद्धि पाई क्योंकि वो अपने को कभी परिपूर्ण नहीं माना। इसीलिए तो 80 वर्ष के कला जीवन में भगवान बालाजी के सम्मुख सदैव रियाजी के रूप में अपना दाखिला देते रहे। सचमुच में बिस्मिल्ला खाँ की कलाकारी सदैव हरेक व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक बना रहेगा।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. अमीरुद्दीन का जन्म डुमराँव, बिहार के एक संगीतप्रेमी परिवार में हुआ था। 5-6 वर्ष डुमराँव में बिताकर वह नाना के घर, ननिहाल काशी में आ गया। शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव के आसपास की नदियों के कछारों में पाई जाती है। फिर अमीरुद्दीन जो हम सबके प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है और इसके लेखक कौन हैं ?
(ख) बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कहाँ हुआ था। उनके बचपन का क्या नाम था ?
(ग) रीड किससे बनता है ? इसका प्रयोग कहाँ होता है ?
(घ) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी क्यों हैं ?
उत्तर
(क) प्रस्तुत गद्यांश नौबतखाने में इबादत शीर्षक जीवन-वृत्त से लिया गया है। इसके लेखक यतीन्द्र मिश्र हैं।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। उनके बचपन का नाम अमीरुद्दीन था।
(ग) रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनता है। इसका प्रयोग शहनाई में होता है। इसी के सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(घ) शहनाईवादक भारतरत्न सम्मानित बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। शहनाई बजाने के लिए रीड की आवश्यकता होती है। रीड नरकट से बनता है जो डुमराँव के आसपास की नदियों के कछारों में पाया जाता है।
2. शहनाई की इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं – -‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर दे कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी।’
(क) शहनाई किसका सम्पूरक है?
(ख) बिस्मिल्ला खाँ नमाज अदा करते समय अल्लाह से क्या इबादत करते हैं ?
(ग) बिस्मिल्ला खाँ किस बात को लेकर आशावान हैं ?
(घ) बिस्मिल्ला खाँ का सिर किसलिए झुकता है ?
उत्तर
(क) शहनाई मंगलध्वनि का सम्पूरक है।
(ख) अस्सी वर्ष की अवस्था में भी बिस्मिल्ला खाँ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे मालिक एक सुर बख्श दें। सुर में वह तासीर पैदा कर दे कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।
(ग) ईश्वर के प्रति अपने समर्पण को लेकर बिस्मिल्ला खाँ आशावान है कि एक दिन समय आएगा जब उनकी कृपा से स्वर में वह तासीर पैदा होगी जिससे हमारी जीवन धन्य हो जायेगा। ईश्वर अपनी झोली से सुर का फल निकालकर मेरी तरफ उछालते हुए कहेगा ले इसे खाकर अपनी मुराद पूरी कर ले।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ का सिर सुर को इबादत में झकता है।
3. काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठिता काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ है। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरी हैं, बड़े रामदासजी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होनेवाला अपार जन-समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं, अपना गम। अपना सेहरा-बन्ना और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।
(क) काशी किसकी पाठशाला है ?
(ख) काशी से बिस्मिल्ला खाँ का कैसा संबंध है ?
(ग) काशी में किन-किन लोगों का इतिहास है?
(घ) लेखक ने काशी को एक अलग नगरी क्यों माना है ?
उत्तर
(क) काशी संस्कृति की पाठशाला है।
(ख) काशी से बिस्मिल्ला खाँ का गहरा संबंध है। काशी ही इनकी इबादत-भूमि है। बालाजी का मंदिर, संकटमोचन मंदिर, बाबा विश्वनाथ मंदिर आदि कई ऐसे स्थान हैं जो इनकी कर्मस्थली और ज्ञानस्थली है। जिस तरह संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से अलग नहीं कर सकते हैं ठीक उसी तरह बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग नहीं कर सकते हैं।.
(ग) काशी में पंडित कंठे महाराज, विधाधरी, रामदास, मौजुद्दीन आदि जैसे महापुरुषों का इतिहास है।
(घ) काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में यह आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित है। इसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। यहाँ संगीत, भक्ति, धर्म आदि को अलग रूप में नहीं देख सकते हैं।
4. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान-जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायनवादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथजी के प्रति भी अपार है।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की परंपरा क्या है ?
(ग) हनुमान-जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति भावनाएँ कैसी थीं?
(ङ) काशी में संकटमोचन मंदिर कहाँ स्थित है और उसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर
(क) पाठ नौबतखाने में इबादत, लेखक-यतींद्र मिश्रा
(ख) काशी में संगीत आयोजन की बहुत प्राचीन और विचित्र परंपरा है। यह आयोजन काशी में विगत कई वर्षों से हो रहा है। यह संकटमोचन मंदिर में होता है। इस आयोजन में शास्त्रीय । एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन होता है।
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ सभा का आयोजन होता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन अवश्य ही होता है।.
(घ) बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति पूर्णरूप से समर्पित हैं। वे पाँचों समय नमाज पढ़ते हैं। इसके साथ ही वे बालाजी मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते हैं। उनकी काशी विश्वनाथजी के प्रति अपार श्रद्धा है।
(ङ) काशी का संकटमोचन मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है। यहाँ हनुमान जयंती अवसर पर पाँच दिनों का संगीत सम्मेलन होता है। इस अवसर पर बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादन होता है।
5. अक्सर कहते हैं क्या करें मियाँ, ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठा शहनाईवाज रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न वह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस जमीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, तो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़ कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे?
(ग) बिस्मिल्ला खाँ के परिवार में और कौन-कौन शहनाई बजाते थे ?
(घ) बिस्मिल्ला खाँ के लिए शहनाई और काशी क्या हैं ?
उत्तर
(क) पाठ-नौबतखानों में इबादत।
लेखक यतींद्र मिश्रा
(ख) बिस्मिल्ला खाँ काशी छोड़कर इसलिए नहीं जाना चाहते थे क्योंकि यहाँ गंगा है, बाबा विश्वनाथ हैं, बालाजी का मंदिर है और उनके परिवार की कई पीढ़ियों ने यहाँ शहनाई बजाई है। उन्हें इन सबसे. बहुत लगाव है।
(ग) बिस्मिल्ला खाँ के नाना काशी के बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाते थे। उनके मामा सादिम हुसैन और अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। इनके दादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ और पिता उस्ताद पैगंबर बख्श खो भी प्रसिद्ध शहनाईवादक थे|
(घ) बिस्मिल्ला खाँ मरते दम तक काशी में रहना और शहनाई बजाना नहीं छोड़ना चाहते, क्योंकि इसी काशी नगरी में उन्हें शहनाई बजाने की शिक्षा मिली और यहां से सब कुछ मिला।
6. काशी आज भी संगत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर- की तमीज सिखानेवाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) आज की काशी कैसी है ?
(ग) काशी में मरण मंगलमय क्यों माना गया है ?
(घ) काशी के पास कौन-सा नायाब हीरा रहा है ?
(ङ) काशी आनंदकानन कैसे है ?
उत्तर
(क)18-नौबतखाने में इबादता
लेखक-यतींद्र मिश्रा
(ख) आज की काशी भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकियाँ उसे सुलाती हैं। बिस्मिल्ला खाँ के शहनाईवादन की प्रभाती, काशी को जगाती है।
(ग) काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना गया है, क्योंकि यह शिव की नगरी है। यहाँ मरने से मनुष्य को शिवलोक प्राप्त हो जाता है और वह जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
(घ) काशी के पास बिस्मिल्ला खों जैसा लय और सुर का नायाब हीरा रहा है जो अपने सुरों से काशी में प्रेम रस बरसाता रहा है। इसने सदा काशी-वासियों को मिलजुल कर रहने की प्रेरणा दी है।
(ङ) काशी को आनंदकानन इसलिए कहते हैं, क्योंकि यहाँ विश्वनाथ विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सदा आनंद-मंगल की वर्षा होती रहती है। विभिन्न संगीत सभाओं के आयोजनों से सदा उत्सवों का वातावरण बना रहता है। इसलिए यहाँ आनंद ही आनंद छाया रहता है।
7. इस दिन खाँ साहब बड़े होकर शहनाई बजाते हैं वे दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है इस दिन। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती हैं। आजादारी होती है। हजारों आँखें नम हजार वर्ष की परंपरा पुनर्जीवित। मुहर्रम सम्पन्न होता है। एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
(ख) प्रस्तुत अवतरण में किस दिन की बात की जा रही है।
(ग) अवतरण में उल्लेख किए गए दिन को खां साहब क्या करते हैं ? और क्यों ?
(घ) इस विशेष दिन कोई राग क्यों नहीं बजाया जाता?
(ङ) अवतरण के आधार पर खां साहब के चरित्र की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
(क) पाठ का नाम- नौबतखाने में इबादत।
लेखक का नाम- यतीन्द्र मिश्रा
(ख) प्रस्तुत अवतरण में मुहर्रम की आठवीं तारीख की बात की जा रही है।
(ग) इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक नौहा बजाते हुए जाते हैं, क्योंकि वे शोक मना रहे होते हैं।
(घ) मुहर्रम की आठवीं तारीख को कोई राम नहीं बजाया जाता। इस दिन इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत के शोक में राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध है।
(ङ) खाँ साहब संवेदनशील, धार्मिक तथा एक बड़े कलाकार थे।