एक वृक्ष की हत्या – कुंवर नारायण प्रश्नोत्तर
Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कुँवर नारायण कैसे कवि हैं ?
उत्तर
कुंवर नारायण मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलने वाले कवि हैं।
प्रश्न 2. कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त किन विधाओं को समृद्ध किया है ?
उत्तर
कुंवर नारायण ने काव्य के अतिरिक्त कहानी, निबंध और समीक्षा के क्षेत्र को समृद्ध किया है।
प्रश्न 3. कुंवर नारायण को कौन-कौन पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर
कुँवर नारायण को साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुमार, आशान पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार के अलावा व्यास-सम्मान, कबीर सम्मान और लोहिया सम्मान प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 4. कवि घर लौटा तो कौन नहीं था?
उत्तर
कवि अबकी बार घर लौटा तो चौकीदार की तरह घर के दरवाजे पर तैनात रहने वाला बूढ़ा वृक्ष नहीं था।
प्रश्न 5. “एक वृक्ष की हत्या’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है?
उत्तर
एक वृक्ष की हत्या’ का वर्ण्य-विषय है नाना प्रकार के प्रदूषण और छीजते मानव-मूल्या ।
Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता था ?
उत्तर
वृक्ष पुराना था, मोटा और मटमैला उसके छाल थे मानो खाकी वर्दी धारण कर रखा हो, एक सूखी डाल जो ऐसा लगता था मानो चौकीदार की राइफल हो। वृक्ष घर के आगे में था जो चौकन्ना जैसा सावधान होकर खड़ा दिखाई पड़ता था। इसलिए वृक्ष कवि को बूढा चौकीदार जैसा लगता था।
प्रश्न 2. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था ?
उत्तर
वृक्ष में मानवीकरण कर कवि ने वृक्ष के साथ संवाद प्रस्तुत किया हैवृक्ष दूर से कवि को पूछता -“कौन ?” कवि जवाब देता “दोस्त !”
प्रश्न 3. इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है। रुपक क्या है और यहाँ उसका क्या स्वरूप है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
रूपक एक अलंकार है। यहाँ उपमा के रूपक की रचना की गई है। जैसे-कविता में वृक्ष की उपमा वफादार चौकन्ना चौकीदार से किया गया है।
Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन अंदेशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर
कविता का समापन करते हुए कवि को अंदेशा है घर के लुटेरों का, शहर के नदियों का, देश के दुश्मनों का, नदियों को नाला हो जाने का, हवा को धुआँ हो जाने का, खाना जहर हो जाने का, जंगल को मरुस्थल बनने का और मनुष्य को जंगली हो जाने का। क्योंकि वृक्ष के कटने से पर्यावरण दूषित हो जाएगी, लोग बीमार पड़ेंगे, गाँव-शहर बर्बाद हो जायेगा। नदियाँ सिमटकर नाला बन जाएगी। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि और ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी। खाने का वस्तु जहर हो जाएगा। जंगल मरुस्थल का रूप ले लेगा। तब मनुष्य पाश्विक प्रवृत्ति को अपनाकर जंगली जानवर की तरह व्यवहार करेगा।
प्रश्न 2. घर, शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर
घर, शहर और देश के बादक कवि नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाना जहर हो जाने से, जंगल को मरुभूमि बनने से तथा मनुष्य की मनुष्यता खत्म होने से बचाने की बात करता है क्योंकि वृक्ष के काटे जाने से पर्यावरण बिगड़ जाता है। वर्षा नहीं होगी तो नदियाँ सूखकर नाली जैसा रूप ले लेगी। हवा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की बाहुलता हो जएगी ऑक्सीजन नहीं रहेगी। खाने की वस्तु जहरीली हो जाएगी। जंगल मरुभूमि बन जाएगा तथा मानव सभ्यता ही समाप्त हो जाएगी।
प्रश्न 3. कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर
“एक वृक्ष की हत्या” शीर्षक कविता प्रासंगिता विचारणीय है। क्योंकि आज के औद्योगिक काल में एक ओर जहाँ उद्योग-धंधे बढ़ रहे हैं उससे निकलने वाला दूषित गैस से पर्यावरण दूषित हो रहा है। वहीं दूसरी ओर वृक्ष दूषित गैस को ग्रहण कर ऑक्सीजन देता है। वन काटे जा रहे हैं, शहरों का निर्माणको है। वन कट जाएंगे तो वर्षा नहीं होगी। अन्न नहीं उपजेंगे तो महामारी फैलेगी । नदियाँ सख जाएंगी। भूमि मरुस्थल में परिवर्तन हो जाएगा। इस अवस्था में मानव सध्यता का अन्त हो जाएगा। अत: वृक्ष को बचाने से ही उपरोक्त सारी चीज बचेंगी।
प्रश्न 4. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“एक वृक्ष की हत्या” शीर्षक सार्थक है। क्योंकि एक वृक्ष जो कवि को वफादार चौकन्ना चौकीदार सादृश्य लग रहा था। वृक्ष सबकी रक्षा करता है। अगर वह काटा जाता है तो वह उसकी हत्या है। हम जब वृक्ष की हत्या होने से बचाएंगे तो हमारा पर्यावरण वचंगा, भूमि मरुस्थली होने से बचेगा तथा मानव-सभ्यता नाश होने से बचेगा।
प्रश्न 5. काव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर
कवि के घर के आगे एक पुराना वृक्षा था। कभी कवि घर से बाहर जाता है। वह जव घर लौटता है तो पेड़ कटा देखकर उसकी अंतर्व्यथा उबल पड़ती है।
पद-अबकी घर लौटा तो देखा …………… मनुष्य को जंगल हो जाने से।
अर्थात् इस बार जब घर आया तो देखा वह पेड़ नहीं था जो बूढ़ा चौकीदार के तरह हमेशा दरवाजे पर तैनात मिलता था। पुराने चमड़े (छाल) पहने लेकिन मजबूत था। मटमैला खुरदुरा उसका तन था। एक सूखी डाल भी उसमें लगा था। मानी वह उसका राइफल हो उसके ऊपर फूलपत्ती थी थे मानो वह उसका पगड़ी हो। पुराना जड़ ऐसा लगता था मानो वह उसका फटा पुराना जूता हो जो चरमराता प्रतीत होता है। लेकिन बल-बूते अक्खड़ जैसा।
धूप-बारिश, गर्मी-सर्दी हरेक अवस्था में वह चौकन्ना दिखाई पड़ता था। खाकी वर्दी पहने चौकीदार के तरह। ऐसा चौकीदार मानो जब भी मैं आता तो दूर से ललकारता “कोन” ? तब मैं जवाब देता “दोस्त”। और क्षणभर के लिए उसकी छाँव में बैठ जाता था।
दरअसल पेड़ कवि ने एक जानी दुश्मन से बचाने के लिए लगाया था। – यदि आपको भी अपने घर का बचाना है लुटेरों से, शहर को बचाना है नादरों से देश को बचाना है देश के दुश्मनों से, नदियों को नाला होने से। हवा को धुआँ होने से खाना को जहर बनने, जंगल को मरुस्थल होने से और यदि बचाना है मनुष्य को जंगली जानवर की तरह हिंसक हो जाने से तो पेड़ को बचाना होगा। वह हमारा आपका सबका रक्षक है ।
काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैलाकुचैला,
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूलपत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन ?”
मैं जवाब देता, “दोस्त !”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छांव में
प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
(क) कविता-एक वृक्ष की हत्या।
कवि-कुँवर नारायण।
(ख) प्रसग-हिन्दी काव्य धारा के सुप्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण ने प्रस्तुत कविता ‘एक वृक्ष की हत्या’ के इस अंश में पर्यावरण की व्यवस्था पर उठते अनेक सवालों की ओर प्रबुद्ध वर्गों को आकर्षित किया है। यहाँ कवि कहना चाहते हैं कि आज प्रबुद्ध वर्ग ही क्षणभंगुर, स्वार्थपरता की लोलुपता में वृक्षों को काटकर शाश्वतता के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
(ग) सरलार्थ-कवि पूर्ण रूप से संवेदनशील हैं अत: ‘एक वृक्ष की हत्या’ के बहाने मनुष्य और सभ्यता के विनाश की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए कहते हैं कि.मेरे घर के बाहर ठीक दरवाजे के सामने एक विशाल छायादार वृक्ष था। कुछ दिनों के बाद जब मैं अबकी बार घर लौटा तो देखा कि उस.वृक्ष को काट दिया गया है। वह बूढा वृक्ष चौकीदार के समान घर के दरवाजे पर तैयार रहता था। वह वृक्ष इतना बूढ़ा और पुराना हो गया था कि उसके तने के बाहरी भाग बिल्कुल काले पड़ गये थे, जैसे लगता था कि वह चौकीदार सख्त और पुराने चमड़े धारण करके खड़ा रहता है। जहाँ-तहाँ वृक्ष के तने में ऊबड़-खाबड़, ऊँच-नीच की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी थीं। कई डालियाँ सूख गयी थीं तो लगता था कि वह बूढ़े वृक्ष के शरीर से झुर्रियाँ लटक रही हैं और कंधे पर राइफल लेकर रखवाली कर रहा है। उसकी ऊँची टहनी पर सुन्दर-सुन्दर फूल के गुच्छे और हरे-हरे पत्ते उसकी पगड़ी के रूप में सुशोभित होते थे। उसके पुराने जड़ फटे-पुराने जूते के समान लगते थे। जैसे लगता था उसके जड़ चरमरा रहे हैं, फिर भी विपरीत परिस्थितियों में शक्ति सामर्थ्य के साथ डटा रहने वाला था। प्रचण्ड गर्मी, मूसलाधार बारिश, कड़ाके की ठंड में हमेशा चौकन्ना रहकर पुराने छाल रूपी खाकी वरदी पहनकर डटा रहता था।
(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि एक तुरन्त काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंत:व्यथा को अभिव्यक्त करता है। मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग कहता है वही क्षणभंगुर स्वार्थ की लिप्सा में पड़कर शाश्वतता के साथ कैसा खतरनाक खिलवाड़ करता है। मानवीय संवेदनाओं और चिंताओं की अभिव्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ती है।
(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है। भाषा प्रतीकात्मक शैली में है जहाँ रूपक का वातावरण अति प्रशंसनीय है।
(ii) तद्भव, तत्सम, देशज और विदेशज शब्दों का सम्मिलित रूप कविता का सौंदर्य बोध स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
(iii) बूढा, चौकीदार, खुरदरा, झुर्रियाँदार ये सभी बिम्बात्मक शब्द रूपक के रूप में कविता को सारगर्भित बना रहे हैं। मुक्तक छंद की कविता होते हुए भी कविता में संगीतमयता आ गई है।
(iv) भाषा परिष्कृत और साफ-सुथरी है। यहाँ यथार्थ का खुरदरापन मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी।
2. दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन ।
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से ।
खाने को जहर हो जाने से:
बचाना है – जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है – मनुष्य को जंगल हो जाने से।
प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्याश का प्रसंग लिखें।
काव्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कर की हत्या।
उत्तर
(क) कविता– एक वृक्ष की हत्या।
कवि- कुँवर नारायण।
(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कहा है कि पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्र एवं मानवता के दुश्मन की आशंका हमेशा है। इनके दुश्मन हमारे बीच विद्यमान हैं और हमें उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इनकी रक्षा हेतु हमें आगे आना होगा। पर्यावरण की रक्षा करके या वृक्षों की रक्षा करके ही हम मनुष्य का बचा सकते हैं। इनके रक्षार्थ हमें इनके प्रति संवेदनशील होना होगा।
(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कुँवर नारायण जी आने वाले पर्यावरण संकट की और ध्यानाकर्षण कराते हैं। घर को लुटेरों का खतरा होता है। शहर को नादिरों से खतरा है। इन्हें बचाने की आवश्यकता है। देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की आवश्यकता है। अर्थात् मनुष्यता और सभ्यता की रक्षा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए और इसके लिए हमें सचेत होना होगा। कवि आगे कहते हैं कि आने वाले दिनों में पर्यावरण प्रदूषण की खतरा मँडरा रहा है। हम वृक्ष का महत्व नहीं देते हैं और उसे बिना सोचे-समझे काट रहे हैं। वृक्ष, पौधे, वनस्पतियों के बचाव से मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा हो सकती है। हमें नदियों को नाला होने से, हवा को धुआँ होने से, खाने को जहर होने से, जंगल को मरुस्थल होने से एवं मनुष्य को जंगल होने से बचाना होगा। इस बचाव कार्य के सदुपायों पर चिंतन करते हुए पर्यावरण, सभ्यता एवं मनुष्यता की हर हाल में रक्षा करनी होगी। इसके लिए वृक्ष की महत्ता को समझना होगा। उसकी हत्या नहीं करनी होगी।
(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि समस्त प्रबुद्ध वर्गों के लिए गंभीर चिंता का सवाल खड़ा कर दिया है। यह पद्यांश आज के समय की अपरिहार्य चिंताओं और संवेदनाओं का रचनात्मक बोध कराता है। सहजता और स्वाभाविकता की अंत:कलह कासे पर्यावरण की सुरक्षा की ओर अग्रसर करता है। केवल कोरे कागज पर या खोखले नारेबाजी से पर्यावरण की सुरक्षा का चिंतन करने के बजाय प्रयोगवादी धरातल पर अंजाम देने की आवश्यकता पर कवि जोर दिया है। यदि प्रबुद्ध वर्ग ऐसा नहीं करता है तो शाश्वता के कोपभाजन का शिकार उसे निश्चित रूप से होना पड़ेगा।
(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) प्रस्तुत कविता खड़ी बोली में लिखी गई है।
(i) भाषा सरल और सुबोध है। यहाँ अलंकार की योजना से रूपक, उपमा और अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।
(iii) कविता में मानवीकरण की प्राथमिकता है।
(iv) शैली की दृष्टि से चित्रमयी शैली अति स्वाभाविक रूप में उपस्थित है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग कविता में पूर्ण व्यंजकता उपस्थित करती है।
(vi) भाषा और विषय की विविधता कविता के विशेष गुण हैं।